आश्रम के वर्तमान पीठाधीश्वर एवं संचालक - श्री बैजनाथजी महाराज
शांता महान्तो निवसन्ति संतो, वसंतवल्लोक हितं चरन्तः
तीर्णाः स्वयं भीमभभवार्णवं जना, न हेतु नान्यानपि तारयन्तः।।
-विवेक चूड़ामणि(शंकराचार्य)
‘‘इस संसार में भयंकर भवसागर से स्वयं तरे हुए और निःस्वार्थ भाव से दूसरों को भी तारते हुए वसंत ऋतु के समान लोक का हित करते हुए शांतचित्त महात्मा संत निवास करते हैं।’’
अत्यन्त भव्य सौम्य मुखमुद्रा जिस पर व्याप्त स्नेह एवं सौजन्य की सुषमा मन को मोह लेती है। करूणा, वत्सलता से भरे सरल सतेज नेत्र दर्शक को शीघ्र ही प्रभावित एवं आकर्षित कर लेते हैं। मन में असीम आस्था एवं विश्वास का प्रकाश सतत् श्रमशीलता का श्रामणीय आदर्श और अप्रमत्त-जागरूक जीवनचर्या के प्रतीक, मनमोहक प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी परम श्रद्धेय परमगुरू श्री बैजनाथ महाराज श्री नाथ जी के आश्रम के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं।
श्री श्रद्धानाथ जी महाराज ने अपने जीवन काल में इनकी आस्था, शुचिता, कर्मठता, विद्वता, निर्मलता आदि गुणोें के आधार पर इन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। अपने गुरू श्री शुभनाथ जी की आज्ञा एवं प्रेरणा से स्थापित श्री नाथ जी के आश्रम में श्री श्रद्धानाथ जी महाराज ने श्री बैजनाथ जी को 28 फरवरी, 1985 को नाथ पंथ की विधिवत् दीक्षा प्रदान कर आश्रम का संरक्षक, संचालक एवं पीठाधीश्वर नियुक्त किया। नाथ पंथ के विशिष्ट संतों एवं आश्रम के हजारों अनुयायियों की उपस्थिति में श्री बैजनाथ जी महाराज ने अपने परम पूज्य श्रद्धेय गुरूवर की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए उनके चरणों में नतमस्तक हो उनकी परम्परा के रूप में महान् योगी एवं गुरू गोरक्षनाथ की परम्परा का निर्वहन करने का उत्तरदायित्व संभाला।
श्री बैजनाथ जी महाराज का जन्म भी श्री श्रद्धानाथ जी की जन्म भूमि पनलावा में ही हुआ अतः बाल्यकाल से ही इन्हें श्री श्रद्धानाथ जी का पावन, स्नेहपूर्ण सान्निध्य प्राप्त हुआ श्री श्रद्धानाथ जी को अपना परम आदर्श मानते हुए उनके संरक्षण एवं दिशा निर्देश में जीवन पथ पर अग्रसर हुए श्री बैजनाथ जी ने श्री श्रद्धानाथ जी के प्रति अपने भावों को समय-समय पर उन्होंने महायोगी गोरखनाथ जी के कथन को उद्धृधत करते हुए प्रस्तुत किया-
सुन्दर विराट स्वप्निल सौम्य स्वरूप
दिव्य प्रकाश से आलोकित दैदीप्यमान
तेजस्वी व्यक्तित्व
विवेकशील अदम्य साहस
ज्ञान विज्ञान के अगाध उदधि
दिव्य ऊर्जायुक्त ओजस्वी वाणी
आत्मश्लाघा से दूर स्वपथगामी
करूणामय वात्सल्यपूर्ण विशुद्ध आत्मीयता
सद्यःजात शिशु सम सरल, निर्मल,
मृदुल निष्कपट मनमोहक मुस्कान
गुरू की हर परिभाषा आपसे पूर्ण होती है
हे युग ऋषि, युग दृष्टा, युग निर्माता
आपके चरणों में सादर नमन
शत् शत् नमन
कोटि कोटि नमन
‘‘श्री गुरूं परमानन्दं, वन्दे स्वानन्द विग्रहम्
यस्य सान्निध्य मात्रेण चिदांनदायते तनुः।।
और इस रूप में गुरू को परम मूर्तिमान आनन्द माना जिसके सान्निध्य मात्र से शिष्य चिदानंदायित हो जाता है।
श्री श्रद्धानाथजी महाराज का आश्रम साक्षी है इन शब्दों, भावों के चैतन्य होने का, सजीव होने का क्योंकि श्री श्रद्धानाथ जी का परम चैतन्य वर्तमान पीठाधीश्वर श्री बैजनाथ जी मैं स्पष्ट प्रतीत होता है अपने गुरू की शक्ति, मर्यादा एवं परम्परा के संवाहक श्री बैजनाथ जी ‘‘घटि घटि गोरख बाही क्यारी, जो निपजै सो होई हमारी।’’ की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। जो शिव हैं वहीं गोरख हैं जो गोरख हैं वहीं अमृत नाथजी हैं जो अमृतनाथ जी वही श्रद्धानाथ जी महाराज हैं और जो श्रद्धानाथजी हैं वही बैजनाथ जी महाराज हैं। जिनके पावन सान्निध्य में श्री श्रद्धानाथजी के आश्रम ने एक दिव्य जाग्रत पीठ के रूप में अपनी पहचान बनाई है।
श्री बैजनाथजी महाराज ने बाबाजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद श्री श्रद्धानाथजी के आश्रम का द्रुत गति से विकास किया-संवर्धन किया, अनेकों सेवा केन्द्र भी स्थापित किए-अपने जीवन के हर क्षेत्र में सतत् सार्थक कार्य करते हुए उन्होंने ‘श्री श्रद्धानाथजी महाराज के आश्रम’ को एक विशिष्ट स्वरूप प्रदान किया है। अपने जीवन के धर्म क्षेत्र में उन्होंने आश्रम के भौतिक स्वरूप का विस्तार कराया अनेक भवन, श्री गोरक्ष मंदिर, श्री श्रद्धा स्मृति मंदिर, श्री श्रद्धा समाधि मंदिर, साधना कक्ष, पुस्तकालय(प्रज्ञान मंदिर) आदि का निर्माण कराया आश्रम का धार्मिक स्वरूप श्रद्धानाथजी के अनुयायियों व तीर्थ यात्रियों के लिए ध्यान, चिंतन, मनन, तप आचरण आदि की दृष्टि से श्रेष्ठ एवं महत्वपूर्ण स्थान सिद्ध हो सके ऐसा प्रयास किया। अपने जीवन के ज्ञान क्षेत्र में विद्या अनुरागी एवं दूरदर्शी श्री बैजनाथ जी महाराज ने उच्चकोटि के संस्कृत ग्रंथों एवं नाथ साहित्य के ग्रंथांें का संग्रह एवं संकलन किया है। वर्तमान में भी आपके द्वारा यत्र तत्र सर्वत्र से प्रामाणिक नाथ साहित्य एवं लेखों का संग्रह व संकलन किया जा रहा है। आश्रम के पुस्तकालय में छः हजार पुस्तकें हैं जिनकी कीमत लाखों रूपये में है एवं अधिकांशतः पुस्तकें खरीदी गई हैं एवं स्वयं पीठाधीश्वर की दृष्टि से हो कर गुजरी हैं।
अपने जीवन के कर्मक्षेत्र में कर्मयोगी पीठाधीश्वर श्री बैजनाथ जी द्वारा श्री श्रद्धा संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना की गई जिसमें ज्योतिष, वेद, पुराण, व्याकरण, नैतिक शिक्षा, शारीरिक शिक्षा, संगीत आदि की समुचित शिक्षा द्वारा आदर्श सुन्दर समाज का निर्माण एवं उच्च चरित्रवान नागरिक तैयार करने का प्रयास चल रहा है। श्री श्रद्धा संस्कृत विद्यापीठ वस्तुतः एक आदर्श शैक्षणिक संस्था है।
अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्या।।
शिक्षा दान परम दान है की भावना से यहाँ कोई शिक्षण शुल्क नहीं लिया जाता एवं यहाँ पूर्णतया निःशुल्क शिक्षा दी जाती है।
प्रखर विद्वान, ज्ञानवेत्ता, मनीषी एवं प्रबुद्ध लेखनी के धनी पीठाधीश्वर श्री बैजनाथ जी महाराज ग्राम भारती विद्यापीठ जैसे प्रसिद्ध सार्थक एवं सुदृढ़ शिक्षा केन्द्र के ढाई दशक तक प्रधानाचार्य एवं सर्वेसर्वा रहे हैं आपकी शिक्षा दीक्षा उच्च स्तर की रही है। आप हिन्दी व अंग्रेजी में एम.ए. हैं तथा बी.एड. भी। श्री बैजनाथ रूपी गुरू एक ऐसे विशाल वृक्ष हैं जिसने न जाने कितने शिष्यों को छाया दी, फल प्रदान किए, प्राणवायु प्रदान की एक ऐसे सागर हैं जिसने न जाने कितनों को रत्न प्रदान किए, ज्ञानामृत दिया। आपका जीवन
‘‘न त्वहं कामये राज्यं न च पुर्नभवम्।
कामये दुःख तप्तानां आर्त्रनाशनम्।।’’
की भावना से त्याग, विराग, अनुराग एवं कर्म पर आधारित है।
त्याग-अहं, मम, परिवार, सांसारिक सुविधाओं का
विराग-उच्च पद, प्रतिष्ठा, नाम, सम्मान, कर्त्तापन के प्रति
अनुराग-सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक जन के प्रति, प्रकृति के प्रति, पशुपक्षियों के प्रति
कर्म-जीवन का लक्ष्य (कर्म ही जीवन है)
आपके द्वारा प्रस्तुत जीवन आदर्शों में धर्मे तत्परता-धर्म और सत्कर्म करने में आलस्य मत करो- आचारे शुचिता अपने आचार, व्यवहार को पवित्र रखो गुरौविन्रमता-गुरू के प्रति श्रद्धा, समर्पण एवं विनयशीलता, चित्तेस्थिरता प्रत्येक परिस्थिति में मन स्थिर एवं संतुलित रखो आदि महत्वपूर्ण एवं विशिष्ट है। इन्हीं आदर्शों को अपनाते हुए श्री बैजनाथ जी ने सदा स्वयं को अपने गुरू श्री श्रद्धानाथ जी के चरणों से जोड़े रखा, समर्पित रखा। अपने प्रत्येक उद्बोधन में आपने कहा ‘‘भाषा शैली एवं वाणी मेरी है किन्तु विचार श्री बाबाजी महाराज के हैं’’ और इस प्रकार उन्होंने अपने गुरू के अंतिम शब्दों ‘‘मैं आज एक गुणा हूँ शरीर छोड़ने के बाद सौ गुणा हो जाऊँगा।’’ को चरितार्थ किया श्री बाबा जी महाराज के प्रत्येक संकेत, प्रत्येक विचार को सैकड़ों शब्दों में अभिव्यक्त किया अपने प्रत्येक श्वास, अपने प्रत्येक शब्द, अपने प्रत्येक विचार, अपने प्रत्येक कर्म द्वारा श्री बाबा जी महाराज को प्रस्तुत किया अति विनम्रता से वे पूरी तरह श्रद्धानाथ बन गए सिवा गुरू के द्वारा प्रदत्त नाम ‘बैजनाथ’ के जिससे उनके तन की पहचान बनी मन एवं आत्मा से वे ‘श्रद्धामय’ बन गए।
वर्तमान पीठाधीश्वर के सुयोग्य शिष्य श्री प्रकाशनाथ जी हैं वे भी अपने गुरू के चरणों में पूरी तरह समर्पित हैं एवं आश्रम की दिनचर्या एवं अन्य व्यवस्थाओं का उत्तरदायित्व वे भली-भांति निभा रहे हैं आश्रम की जिम्मेदारी का निर्वहन करने के साथ-साथ वे स्वाध्याय में भी निमग्न रहते हैं।
पीठाधीश्वर श्री बैजनाथ जी पुस्तकें:
भारतीय संस्कृति में मान्यता है कि शब्द गुरू होता है एवं गुरू शब्द होता है शब्द कालातीत होता है अतः गुरू भी कालातीत होता है। यदि इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हम देखेंगे कि आज जो भी मानव सभ्यता एव ंसंस्कृति है वह गुरूओं की ही देन है। प्रबुद्ध, संस्कारी एवं आदर्शों से युक्त गुरू अपने शब्दों एवं विचारों के प्रकाश में अपने शिष्यों एवं समाज का मार्गदर्शन करते हैं। पीठाधीश्वर श्रद्धेय गुरूवर श्री बैजनाथ जी महाराज के विचारों का संकलन श्री नाथ जी महाराज आश्रम ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित एवं उपलब्ध है-तत्व चिंतन, प्रेरणा के स्वर, विचार मंथन आदि पुस्तकें धर्म, दर्शन, योग, विज्ञान, जीवन साधना आदि विविध विषयों पर प्रकाश डालती है। महाराज श्री बैजनाथ जी के शब्दों में ‘‘शिक्षा हमारी अस्मिता की पोषक है तो साहित्य चिंतन की एक प्रवृत्ति’’ ‘‘इनका विस्तार मनुष्य को पूर्णता की तरफ ले जाता है जिससे एक दिव्य दिशा की प्राप्ति संभव है।’’ आदि चिंतन परम्परा के बुनियादी सिद्धांतों की तत्व चिंतन परक दृष्टि से की गई मीमांसा युक्त ये पुस्तकें आध्यात्मिक अभिरूचि वाले पाठकों को गहन तृप्ति का अनुभव कराती हैं।
सहजयोगी संत श्री श्रद्धानाथ जी महाराज एवं श्री श्रद्धानाथ जी की साधना एवं विचार पुस्तकें श्री श्रद्धानाथ जी के जीवन परिचय के साथ-साथ नाथ पंथ के रहस्यों एवं साधना के सोपानों को उजागर करती हैं। जीवन में सत्य, प्रेम, करूणा, उदारता, निर्भीकता, दृढ़संकल्प, साहस, सहनशीलता आदि सद्गुणों के विकास के लिए ये पुस्तकें प्रकाश स्तम्भ की भांति हैं जिसके प्रकाश में आने वाले वर्षों में हजारों लाखों व्यक्ति अपने लिए उपयुक्त जीवन मूल्यों का निर्धारण कर पाएंगे।
पुस्तकों के नाम: प्रकाशक: श्रीनाथजी का आश्रम, लक्ष्मणगढ़, सीकर(राज.)
- सहजयोगी संत श्री श्रद्धानाथ जी महाराज
- सहजयोगी संत श्री श्रद्धानाथ जी महाराज-साधना और विचार
- विचार मंथन
- तत्व चिंतन
- प्रेरणा के स्वर
- गोरख सुमरणी