शिक्षाएँ (श्रद्धा सूत्र) (श्री श्रद्धानाथ जी महाराज की कतिपय शिक्षाएँ):
- तप करो या जप करो, चोखो लागे वही करो।
- मौत बड़ी है सुहावनी, क्यों डरता है तोय। जीते जी जो मर गया, मौत न उसकी होय।।
- मनुष्य में प्रेम इस प्रकार पाया जाता है जैसे। पुष्प में सुगंध। प्रेम रहित मानव गंधहीन पुष्प की तरह है।।
- अपने आप से प्रेम करो, परस्पर प्रेम करो और परमात्मा से प्रेम करो।
- अच्छे कार्यों के लिए समय कम है, बल्कि सारा जीवन ही कम है।
- शनैः शनैः चलिजात है सब देवन को साथ। देवी रहसी काठ की अरु बाबा पारसनाथ।।
- प्रेम ही सबमें एकता पैदा कर सकता है। शुद्ध प्रेम ईश्वर तक पहुँचाता है। प्रेम आनंद स्वरूप है।
- भाव पवित्र, भजन पवित्र, विश्वास प्रेम पवित्र और पवित्र सेवा नाथ कहे सुन रे अवधू, इस विध काया उत्तम हुआ।
- जीवन मुक्ति ही है असली मुक्ति मरने के बाद कैसी मुक्ति।।
- आत्मा शुद्ध है, शाश्वत है, चेतन है, साक्षी सत्ता है। उसमें न हर्ष है न शोक है न पाप और न पुण्य
- आत्मा न कर्त्ता है न भोक्ता।
- आत्मा शुद्ध चेतन के अंश रूप में आनन्दस्वरूप है।
- निर्द्वन्द्व होकर अपने गुरू के स्वरूप में मिल जाओ।
- परम सत्ता आनन्द स्वरूप सूक्ष्म से सूक्ष्मतम एवं विशाल में विशालतम है।
- अगर साकार का ध्यान करना है तो केवल गुरू का करो सबसे पहले गुरू भाव (गुरू के प्रति समर्पण) धारण कर भाव-नदी में बह जाओ। मैं और तू का भेद मिटा दो और एकाकार होकर गुरू लक्ष्य को समझो।
- श्वास में सांस जपता रह, सीख भजन की रीत यह अलख निरंजन सर्वव्यापक, भावातीत विदेह।
- सच्चा व्यक्ति ही समाज का कर्णधार है, वही युग प्रवर्तक है अगर आप सम्मान चाहते हैं तो सच्चे बनो।
- हमें पतित से पतित व्यक्ति भी स्वीकार्य है। अगर वह अपने के सही दिशा देने के लिए कृत संकल्प हो।
- भौतिक आवश्यकताओं को बढ़ने मत दो, सीमित साधनों में ही जीने का अभ्यास करो। आवश्यकता बढ़ाना लोभ है।
- सीधा-सादा खाना, सीधा सादा पहनावा। दिखावे से दूर रहना सुखी जीवन की मूलभूत बातें हैं।।
- सत्य एक महान् शक्ति है। जहाँ सत्य है, वहाँ सर्वदानंद है। वहाँ श्रीनाथ जी महाराज की कृपा से सब काम सफल होते हैं।।
- मन को मन से जीतो उसे अपने ही घर में रोको। जब वह घर पर निवास करेगा तो नस-नस में शांति छा जाएगी, आनन्द की लहरें उत्पन्न होंगी।
- अपने अस्तित्व को ईश्वर में विलीन कर दो बूंद का अपना अस्तित्व है किन्तु दरिया में मिलने के बाद वह दरिया बन जाती है। जहाँ आकार है वहाँ विकास है।
- गुरू सर्वस्व है-गुरू कृपा सबसे बढ़कर है।
- तीन बातें छोड़े-भय, भ्रम एवं संशय तीन बातें अपनाएँ-निर्भय, निःशंक और निभ्रांति
- दृढ़ विश्वास या आस्था ही ईश्वर का पर्याय है।
- आत्मा की खोज करते हुए परमानंद की प्राप्ति में प्रयत्नशील रहो।
- यह जगत सर्वोत्तम शिक्षा स्थल है जिसने अनुभव और अन्तर्ज्ञान से अपने अंतःकरण को पूर्ण कर लिया है, सही अर्थों में वही शिक्षित है और वही ज्ञानी है।।
फोटोगैलेरी
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